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सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से पूछे कड़े सवाल, बिना ट्रायल जेल में रखने पर जतायी आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने बिना ट्रायल के लोगों को जेल में रखे जाने पर कड़ा आपत्ति जतायी है। सप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ़्तारी के साथ ही मुक़द्दमा शुरू हो जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने ईडी से कड़े सवाल पूछते हुए इस मामले में एक महीने तक रोज़ाना सुनवाई करने का फ़ैसला किया। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ज़मानत नहीं दी। 

न्यायधीश खन्ना ने ईडी की तरफ़ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी राजू से कहा – ‘आप यह नहीं कह सकते हैं कि जब तक जाँच पूरी नहीं होगी तब तक  ट्रायल शुरू नहीं होगा। ऐसे आप पूरक आरोप पत्र दाख़िल करते नहीं रह सकते, जिससे व्यक्ति बिना किसी ट्रायल के जेल में हो।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी झारखण्ड के अवैध खनन मामले में एक ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की। इस मामले में आरोपितं प्रेम प्रकाश पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सहयोगी हैं।पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग  मामले में गिरफ़्तार किया था। पिछले साल झारखण्ड उच्च न्यायालय ने प्रेम प्रकाश को ज़मानत देने से इनकार कर दिया था। प्रेम प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है। सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत को सही मानते हुये ईडी से सवाल किया कि आरोपी किस आधार पर जेल में बंद है? ईडी के वकील ने तर्क दिया कि अगर आरोपी बाहर रहेगा तो सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा कुछ होता है तो तब आप हमारे पास आ सकते है। 

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा किव्यक्ति  18 महीनों से जेल में है और ये हमें परेशान कर रहा है। हम अभी आपको नोटिस दे रहे हैं और आगे यह बात हम फिर से उठायेंगे।सप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब आप किसी व्यक्ति की गिरफ़्तारी करते है तो तभी मुक़द्दमा शुरू हो जाना चाहिये।

 

क्या है मौजूदा क़ानून ?

वर्तमान क़ानून के अनुसार एक गिरफ़्तार व्यक्ति डिफॉल्ट ज़मानत का हक़दार है यदि जाँच अधिकारी सीआरपीसी या आपराधिक प्रक्रिया संहिता द्वारा निर्धारित समयसीमा के भीतर अंतिम आरोप पत्र दायर करने में विफल हो जाता हैं। यह समयावधि या तो 60 या 90 दिनों तक की है ।

सप्रीम कोर्ट ने पिछले साल भी डिफॉल्ट ज़मानत को लेकर अपना आज वाला रुख अपनाया था। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्प्पणी से कई बड़े मामले प्रभावित हो सकते हैं जिनमें विपक्ष के नेता भी शामिल हैं। कई ऐसे लोग हैं जिनपर मामला सिद्ध नहीं हुआ है और न ही ट्रायल शुरू किया गया है  लेकिन वे जेलों में बंद हैं। 

विपक्ष का दावा है कि भाजपा सरकारी संस्थानों का इस्तेमाल अपने फ़ायदे के लिए करती है । लेकिन भाजपा के नेताओं ने अपने कई बयानों में सरकारी संस्थानों को स्वतंत्र बताया है । देखना होगा सप्रीम कोर्ट डिफ़ॉल्ट ज़मानत मामले में क्या फ़ैसला लेती है। लेकिन जो भी फ़ैसला होगा यह कई लोगों को प्रभावित करने वाला है। 

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