देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे समेत 500 से अधिक वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया है की न्यायपालिका पर दबाव बनाया जा रहा है। न्यायपालिका को राजनीतिक और व्यावसायिक दबाव से बचना होगा। वकीलों ने पत्र में लिखा है, “न्यायिक अखंडता को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। हम वो लोग है, जो कानून को कायम रखने के लिए काम करते है। हमारा यह मानना है कि हमें अदालतों के लिए खड़ा होना होगा। अब साथ आने और आवाज उठाने का वक्त है। उनके खिलाफ बोलने का वक्त है जो छिपकर वार कर रहे है। हमें निश्चित करना होगा कि अदालतें लोकतंत्र का स्तंभ बनी रहें।”
एक ‘खास ग्रुप’ पर निशाना
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि न्यायपालिका पर एक ‘खास ग्रुप’ अपना प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है। जिसे लेकर हम बहुत ज्यादा चिंतित है। यह ग्रुप न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और अपने घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडा के तहत झूठे आरोप लगाकर अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। ग्रुप की इन हरकतों से न्यायपालिका से विश्वास ख़त्म कर रह है। राजनीतिक मामलों में दबाव के हथकंडे आम बात हो गई है। खासतौर से उन केस में जिनमें कोई राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में घिरा है। ये हथकंडे हमारी अदालतों को नुकसान पहुंचा रहे है और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा बनता जा रहा है। ये खास समूह कई तरीकों से काम करता है। ये हमारी अदालतों के सुनहरे समय का हवाला देते है जिससे वर्तमान की घटनाओं से तुलना करते है। यह बयान जानबूझकर दिए जाते हैं ताकि फैसलों को प्रभावित किया जा सके और राजनीतिक फायदे के लिए अदालतों को संकट में डाला जा सके।
पत्र में लिखा गया है कि कुछ वकील दिन में किसी राजनेता का केस लड़ते है और रात में वो मीडिया में चले जाते है। यह न्यायपालिका की गरिमा को प्रभावित करता है। कुछ लोग अपने केस से जुड़े न्यायाधीशों के बारे में झूठी जानकारियां सोशल मीडिया पर फैलते है। ये हमारी अदालतों की पारदर्शिता के लिए खतरा है और क़ानून पर हमला है। जब देश चुनाव में चुनाव होते हैं तभी इस तरह की घटना होती है। हमने यह चीज 2018-19 में भी देखी थी। इस तरह की हरकत न केवल हमारी अदालतों का असम्मान है, बल्कि मानहानि भी है। इससे हमारी अदालतों की गरिमा पर हमला होता है।
पत्र में न्यायपालिका के समर्थन में एकजुट रुख अपनाने का आह्वान किया गया है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ बना रहे।
गौरतलब है कि हरीश साल्वे इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के वकील थे। आमतौर पर वे मोदी सरकार के हितों के पक्ष में खड़े दिखते हैं। माना जा रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों से सरकार हतप्रभ है। यह पत्र उसी की प्रतिक्रिया समझी जा रही है।