इलेक्टोरल बॉंड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉंड्स को असंवैधानिक बताया। फैसला देते हुए कोर्ट ने दो मुख्य बातें कहीं थींं –
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया 6 मार्च तक इलेक्टोरल बॉंड से संबंधित सारी सूचनाएं (किसने, किस पार्टी को कितना चंदा दिया) चुनाव आयोग को सौंपे
- चुनाव आयोग 13 मार्च तक सारी सूचनाएँ अपनी वेबसाईट पर सार्वजनिक करे
लेकिन इस फैसले के बीस दिनों बाद और तय समय सीमा से दो दिन पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इस समयावधि में सूचनाएँ साझा करने में असमर्थता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दाखिल किया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इन सूचनाओं को संग्रहित करके चुनाव आयोग को सौंपने के लिए 30 जून 2024 तक का समय मांगा है। विपक्षी दल एसीबीआई के इस आवेदन को लेकर सरकार पर हमलावर हैं। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने प्रैस कांफ्रेंस करके कहा कि लगभग दो लाख पचास हज़ार कर्मचारियों की क्षमता वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को सूची तैयार करने में इतना समय क्यों लगेगा? उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेेपी नहीं चाहती कि लोकसभा चुनावों से पहले ये सूचना बाहर आ जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के आने के बाद कई विशेषज्ञों ने ये आशंका जताई थी कि ये फैसला कभी अमल में नहीं आ पाएगा।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का आवेदन संदेह के घेरे में क्यों?
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा सूचना सौंपे जाने के लिए समयावधि में वृद्धि की मांग कई कारणों से संदेह के घेरे में है। पहला, इलेक्टोरल बॉंड्स खरीदने के लिए केवाईसी से पूर्ण अकाउंट्स के ज़रिए भुगतान करना होता है, मतलब बाँड किसने खरीदा, ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को पता है। दूसरा, जो राजनैतिक दल इन बॉंड्स को भुनाते हैं, उसकी सूची भी बैंक के पास है। इन दोनों सूचियों का मिलान करते ही ये पता चल जाएगा कि किसने, किस पार्टी को कितना चंदा दिया। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का पक्ष ये है कि सुरक्षा के लिहाज़ से सूचना संग्रहित करने के लिए कोड्स का प्रयोग किया गया था। इस कारण दो सूचना साइलोज़ को डिकोड करके मिलान करने में समय लगेगा।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
15 फरवरी को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 12 अप्रैल 2019 से 15 फ़रवरी 2024 तक के इलेक्टोरल बॉंड्स के विवरण सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। मतलब जो सूचना सेट, बैंक को संग्रहित करने थे, वो एक दिन में नहीं बने। बल्कि 12 अप्रैल 2019 से 15 फ़रवरी 2024 तक आहिस्ते-आहिस्ते बने हैं। इस समयावधि में कुल 22217 चुनावी बाँड्स खरीदे गए। हमने आईटी इंडस्ट्री के कुछ विशेषज्ञों से बात की। उनमें से कुछ का कहना है कि ये काम अधिकतम दो दिनों में हो सकता है। वहीं कुछ लोगों ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पक्ष के बारे में कहा कि हो सकता है सुरक्षा कारणों से सूचीबद्ध करते हुए कोड्स का प्रयोग किया होगा। दोनों डाटा सेट में अलग–अलग मीट्रिक्स हो सकती हैं। लेकिन इस स्थिति में भी 20 दिनों का समय किसने, किसे, कितना चंदा दिया की सूची तैयार करने के लिए पर्याप्त होगा, क्योंकि दोनों डाटा सेट का स्वामित्व SBI के पास ही है।
क्या बैंक केंद्र सरकार के दबाव में है?
आईटी विशेषज्ञों से बात करने पर ये पता चलता है कि तकनीकी रूप से सामान्य स्थितियों में ये कार्य न तो बहुत जटिल है और न ही बहुत समय लेने वाला। जहाँ तक कार्यबल की बात है तो लगभग दो लाख पचास हज़ार कर्मचारियों के साथ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं की सूची में 10वें नंबर पर है। 23 प्रतिशत मार्केट शेयर के साथ ये देश का सबसे बड़ा बैंक है। मतलब कार्यबल के लिहाज़ से भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए थी। इन स्थितियों को देखते हुए विपक्षी दलों के नेताओं से लेकर सोशल मीडिया पर धारणा का निर्माण करने वाले समूहों ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के इस आवेदन की आलोचना की है। और आशंका जताई है कि ये सब कुछ केंद्र सरकार के हितों की रक्षा के लिए हो रहा है।
इलेक्टोरल बॉंड: क्या और कैसे?
दरअसल, इलेक्टोरल बॉंड की योजना केंद्रीय बजट 2017-18 के दौरान वित्त विधेयक, 2017 में पेश की गई थी। वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने 2 जनवरी 2018 को गज़ट में इलेक्टोरल बॉंड स्कीम को अधिसूचित किया। इलेक्टोरल बॉंड करेंसी नोट्स की तरह समझे जा सकते हैं। इन्हें 1,000 रुपये, दस हज़ार रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपयों के मूल्यवर्ग में बेचा जाता है। कोई भी व्यक्ति, समूह या कॉर्पोरेट संगठन इन्हें खरीदकर अपनी पसंद की पार्टी को दान कर सकता है। जिसे दान किया जा रहा है, वो पंद्रह दिनों के अंदर इलेक्टोरल बॉंड को बिना ब्याज़़ के भुना सकता है। ऐसा न करने की स्थिति में ये बॉंड प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा हो जाते हैं।
सबसे बड़ी लाभार्थी बीजेपी!
इसके बाद मार्च 2018 से जनवरी 2024 तक इलेक्टोरल बॉंड्स के ज़रिए 16492.47 करोड़ रुपयों का चंदा राजनैतिक पार्टियों ने भुनाया। मार्च 2018 से अप्रैल 2023 तक इलेक्टोरल बॉंड्स द्वारा कुल चंदे का लगभग 55% हिस्सा बीजेपी को मिला है। दूसरे स्थान पर कांग्रेस रही। जिसे कुल चंदे का 9.3% हिस्सा मिला। संख्या के हिसाब से मार्च 2018 से मार्च 2023 तक बीजेपी को 6566.11 करोड़ रुपयों का चंदा जबकि कांग्रेस को 1123.29 करोड़ रुपयों का चंदा इलेक्टोरल बॉंड्स के ज़रिए मिला। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि इलेक्टोरल बॉंड्स की सबसे बड़ी लाभार्थी बीजेपी रही है। 29 अक्तूबर 2023 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दाख़िल किया था। हलफ़नामें में सरकार ने कहा था कि लोगों को इलेक्टोरल बॉंड्स के स्रोत जानने का सामान्य अधिकार नहीं है। ज़ाहिर है, बेजीपी नीत केंद्र सरकार राजनैतिक चंदों और दानदाताओं के नामों पर पर्दा डालना चाहती है।
रिज़र्व बैंक और चुनाव आयोग भी उठा चुका है सवाल!
2017 में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने मोदी सरकार को आगाह किया कि “मनी लॉन्ड्रिंग” के लिए शेल कंपनियाँ इलेक्टोरल बांड का दुरुपयोग कर सकतीं हैं। 2019 में भारत के चुनाव आयोग ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉंड स्कीम पारदर्शिता के सवालों को उलटने वाला क़दम है। मतलब चुनावी चंदों पर पर्दा डालने वाला क़दम है। 15 फ़रवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉंड स्कीम असंवैधानिक था।
लोकसभा चुनाव 2019 के अलावा कई राज्यों के विधानसभा चुनावों को इलेक्टोरल बॉंड ने प्रभावित किया। विपक्ष इलेक्टोरल बॉंड का विरोध करता रहा। सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीति और कॉर्पोरेट के गठजोड़ पर लिखते रहे। और आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले से उम्मीद जगी कि लोकसभा चुनावों से पहले राजनीति और कॉरपोरेट का ये गठजोड़ लोगों के सामने आ जाएगा। लेकिन एसबीआई, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार “किसने, किसे, कितना” चंदा दिया, की सूची चुनाव आयोग को देनी थी, उसने सुप्रीम कोर्ट से ये सूची तैयार करने के लिए समयावधि बढ़ाने की मांग की है। ज़ाहिर है कि कम से कम लोकसभा चुनावों से पहले इस सूचना का सार्वजिनक होना मुश्किल है।