लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा और अकाली दल में गठबंधन पर सहमति नहीं बन पायी है। अब बीजेपी पंजाब में लोकसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। दरअसल, शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी में पारित प्रस्तावों में कई ऐसे मुद्दे थे जिनको लेकर भाजपा असहमत थी। इन प्रस्तावों में एनएसए(राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) को ख़त्म करने, फ़िरोजपुर और अटारी बॉर्डर को खोलने जैसे मुद्दे थे जिन पर भाजपा को सख़्त आपत्ति थी। यही नहीं, अकाली दल 13 में से 4 से ज़्यादा सीटें भाजपा को देना नहीं चाहता था।
अकाली दल ने दूरी क्यों बनायी
अकाली दल पहले एनडीए गठबंधन का हिस्सा था लेकिन कृषि कानूनों के मुद्दे पर वह अलग हो गया था। हालिया किसान आंदोलन ने भी अकालियों को बीजेपी के साथ जाने की राह में बाधा खड़ी कर दी है। अकाली दल ने कहा है कि सिख राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई, चंडीगढ़ को पंजाब में शामिल करने और किसानों के मुद्दे पर बीजेपी कोई ठोस आश्वासन देने के लिए तैयार नहीं थी। इसके साथ ही एनएसए(राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) को ख़त्म करने, फ़िरोजपुर और अटारी बॉर्डर को खोलने जैसे मुद्दों पर भी सहमति नहीं थी। भाजपा 13 में से 5 से 6 सीटों पर लड़ना चाहती थी लेकिन अकाली दल 4 सीटों से ज़्यादा देने से सहमत नहीं था।
1998 के बाद ऐसा पहली बार होगा कि भाजपा और शिरोमणि अकाली दल लोकसभा चुनाव साथ नहीं लड़ेंगे। हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनाव भी दोनों ने अलग लड़े थे और बुरी तरह हारे थे। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 2 और अकाली दल को 3 सीटें ही मिल पायी थीं।
भाजपा ने क्या कहा
गठबंधन न होने की स्थिति में बीजेपी ने राष्ट्रवाद का मुद्दा उछाला है। पंजाब बीजेपी नेताओं ने कहा कि उनकी पार्टी का मुद्दा राष्ट्रवाद है। इसपर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होगा। पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि भाजपा ने पंजाब में चुनाव अकेले लड़ने का फ़ैसला किया है। यह फ़ैसला लोगों, कार्यकर्ताओं, और नेताओं के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद किया है। यह फ़ैसला पंजाब के किसानों,युवाओं, मज़दूरों, व्यापारियों, पिछड़े वर्गों को ध्यान में रखते हुये लिया गया है। सुनील जाखड़ ने आगे कहा कि पिछले 10 सालों से केंद्र द्वारा किसानों की उपज का हर दाना ख़रीदा गया है और उचित एमएसपी किसानों के बैंक खातों में एक सप्ताह के अंदर भेजा गया है।
चर्चा है कि आंदोलनकारी किसानों के साथ केंद्र सरकार ने जिस तरह का बर्ताव किया उसने भी गठबंधन नहीं होने दिया। अकाली नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी को भाजपा से दूर रहने की सलाह दी थी। किसानों में इसे लेकर काफी गुस्सा है। खासतौर पर पंजाब के ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को काफी मुश्किल होगी। अकाली दल भी गठबंधन की सूरत में किसानों के गुस्से का शिकार हो सकते थे।