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बीजेपी सरकारों ने दस साल में ढहाये डेढ़ लाख घर, बेघर हए  7 लाख 40 हज़ार लोग

साल 2022 और 2023 में देश भर में राज्य सरकारों द्वारा लगभग 1 लाख 50 हज़ार घरों को ढहा दिया गया। जिसकी वजह से 7 लाख 40 हज़ार लोगो को अपना घर छोड़ना पड़ा। अगर सिर्फ़ साल 2023 की ही बात करे तो औसतन हर दिन 294 घर तोड़े। और हर घंटे 58 लोगो को बेघर किया। यानी की एक दिन की गणना करें तो, सरकारों ने हर दिन लगभग 1392 लोगों को बेघर किया। ये एक बहुत ही बड़ा नंबर है। इन आँकड़ो का खुलासा किया है, एचएलआरएन ने अपनी एक रिपोर्ट में। एचएलआरएन यानी “हाउसिंग एंड लैंड राइट नेटवर्क” मानवाधिकारों के लिए सक्रिय एक स्वतंत्र संस्थान है। 

क्या-क्या लिखा है एचएलआरएन इस रिपोर्ट में 

एचएलआरएन की इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में घर टूटने की वजह से 2 लाख 22 हज़ार लोग बेघर हुए। हर दिन 129 घर गिराए गये। इसकी वजह से 2022 में औसतन 25 लोग प्रति घंटे बेघर हुए। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 40 लाख लोग ऐसे हैं जिनके पास घर नहीं है। यहाँ तक कि झुग्गी-झोपड़ियाँ भी नहीं है। 7 करोड़ 50 लाख लोग ऐसे हैं जो झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं। राज्यों में बीजेपी  सरकारों के बुलडोज़र न्याय की वजह से साल 2017 से 2023 के बीच 16 लाख 80 हज़ार लोग बेघर हो गये। इन मामले में सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी हुई साल 2023 में। 2023 में लगभग 5 लाख 15 हज़ार लोगों के घरों को ढहाया गया। अभी भी 1 करोड़ 70 लाख लोग ऐसे है, जिनको बेघर होने का डर सता रहा है। बेघर करने में दिल्ली सबसे टॉप पर रहा। यहाँ 2022 और 2023 में विभिन्न ऑथोराइटीज़ द्वारा लगभग 2 लाख 78 हज़ार लोगो को बेघर कर दिया गया। ये आँकड़े भारत में सबसे अधिक हैं। इसके अलावा रामापीर नोटेकरो अहमदाबाद और नया घाट अयोध्या भी इस लिस्ट में शामिल हैं। 

सरकारी संस्थाओं ने घरों के साथ क़ानून भी ढहा दिये

हैरानी की बात है कि सरकारी संस्थाओं ने घर ढहाने की मुहिम में क़ानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। इस मुद्दे को लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी अपनी एक रिपोर्ट छापी है। एमनेस्टी इंटरनेशनल एक ग़ैर सरकारी संस्था है जो मानव-अधिकार और स्वतंत्रता के लिए कार्य करती है। रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि घरों को ढहाते समय मानवीय अधिकारों का उलंघन हुआ।

 

एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट क्या कहती है 

एमनेस्टी इंटरनेशनल की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि असम, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में सरकारों ने दंडात्मक कार्यवाही करते हुए बुलडोज़र से लोगों के घर गिरा दिये थे। इन राज्य में बीजेपी की सरकार थी सिर्फ़ दिल्ली को छोड़ कर। लेकिन दिल्ली की क़ानून व्यवस्था केंद्र सरकार के अधीन है और केंद्र में बीजेपी की ही सरकार है। इन राज्यों में 2022 में अप्रैल और जून के बीच दंडात्मक कार्यवाही के 128 मामले सामने आये। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पाया कि सांप्रदायिक दंगों के बाद मुस्लिमों के घरों को ध्वस्त कर दिया गया और ये काम एक सज़ा का रूप किया गया। ख़ासतौर पर मुस्लिम बस्तियों को ध्वस्त करने के लिए चुना गया। मुस्लिमों की सम्पत्ति को चुन चुन कर तोड़ दिया गया जबकि पास में खड़ी हिंदूओं की सम्पत्ति को छोड़ दिया गया। मुख्यत: गुजरात और मध्य प्रदेश में ऐसी दंडात्मक कार्यवाही हुई। कुल 128 मामलों में 56 मामले मध्य प्रदेश के हैं। 

सरकार की एकतरफ़ा कार्रवाई 

इन मामलों में किस तरह सरकार की कार्रवाई एक तरफ़ा रही, इसे एक उदाहरण से समझते हैं। अदनान मंसूरी, 18 साल का युवक151 दिनों तक जेल में रहा। जेल में रहने के अलावा उसे एक और सज़ा मिली। जुर्म साबित होने से पहले ही उसके मकान पर बुलडोज़र चला दिया गया। 7 जुलाई 2023 को उज्जैन में महाकाल की शोभायात्रा निकल रही थी। जब ये शोभायात्रा टंकी चौराहे के पास से गुज़र रही थी तो आरोप लगा कि मुस्लिम समुदाय के तीन लोगों ने उस पर ‘थूका’ है। आरोप की पुष्टि के लिए एक वीडियो भी पेश किया गया जिसमें कुछ मुस्लिम युवक पानी की बोतल के साथ छत पर नज़र आ रहे थे। काफी बवाल हुआ, धरना-प्रदर्शन सब हुआ। सावन लोट नाम के व्यक्ति ने एफ़आईआर  दर्ज कराई। उज्जैन के खारा कुआं थाने की पुलिस ने तीन मुस्लिम युवकों को हिरासत में लिया। गिरफ्तार लड़कों में दो नाबालिग थे। पुलिस ने धार्मिक भावनाएं आहत करने और दंगे भड़काने की कोशिश जैसी धाराएं लगा दीं। पुलिस पूछताछ में लड़कों ने सफाई दी थी कि वो महज़ पानी पी रहे थे। बहरहाल, दो नाबालिग लड़कों को बाल सुधार ग्रह भेजा गया और तीसरे – अदनान मंसूरी को, ज्यूडिशियल कस्टडी में भेजा गया। कहानी यही ख़त्म नहीं हुई।

हो सकता है घर अवैध हो लेकिन ढोल बजाने के पीछे क्या मक़सद 

घटना के दो दिन बाद, 19 जुलाई 2023 को पुलिस प्रशासन और उज्जैन नगर निगम गाजे-बाजे के साथ अदनान मंसूरी के पिता अशरफ हुसैन मंसूरी के घर पहुंचा। कहा गया कि उनका घर अवैध तरीक़े से बना हुआ है। यानी अवैध निर्माण का केस है। लेकिन सवाल ये है कि अगर घर का अवैध तरीक़े से निर्माण किया भी गया था तो इसमें ढोल बजाने के पीछे क्या मक़सद था?  बुलडोज़र ने अपना काम किया। घर और घर के नीचे बनी छोटी सी किराना दुकान को तोड़ दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नोटिस चिपकाए जाने के करीब एक घंटे बाद ही प्रशासन पहुंच गया था। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि बैक डेट में अवैध निर्माण का नोटिस जारी किया गया था। वहीं, कार्रवाई के कुछ घंटों बाद, मध्य प्रदेश बीजेपी के मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने एक बयान जारी करते हुए कहा था, “जो शिव को अपमानित करेगा, उसे तांडव के लिए भी तैयार रहना चाहिए। ये शिवराज सरकार है। यहां न सिर्फ अपराधियों पर कार्रवाई होती है। बल्कि इतनी सख्त होती है कि उनके हौसले तक टूट जाएं।” तस्वीरें आईं और सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुईं। इस कार्रवाई का स्वागत और विरोध उसी तरह हुआ, जैसी इन दिनों परंपरा सी बन गई है। 

जमानत मिली लेकिन घर नहीं बन पाया 

इस साल 16 जनवरी को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस केस में अदनान मंसूरी को ज़मानत दे दी क्योंकि मुख्य शिकायतकर्ता सावन लोट ने कोर्ट में कहा कि उसने शोभायात्रा पर थूकने जैसी कोई हरकत देखी ही नहीं थी। ये भी कहा कि उसने पुलिस के दबाव में बयान पर सिग्नेचर किए थे। इसके अलावा इस केस में गवाह बने अजय खत्री नामक युवक ने भी यही किया। दोनों कोर्ट में अपनी बात से मुकर गए। दोनों ने ही कोर्ट में कहा कि न तो उन्होंने आरोपियों को शोभायात्रा पर थूकते हुए देखा था, ना ही आरोपियों की पहचान की थी। शिकायतकर्ताओं की अपनी बात से मुकर जाने पर अदनान मंसूरी को जमानत तो मिल गई। लेकिन घर पर बुलडोज़र चल चुका था। उस सज़ा की भरपायी अब भी नहीं हो पायी है। न ही उन लोगों के घरों की भरपायी हो पायी है जिनके घरों को सांप्रदायिक दंगों में एक विशेष धर्म का होने के कारण सरकार ने चुन-चुन कर तोड़ दिया था। 

 

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