इन दिनों लद्दाख के लेह जिले में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लोगों की चार माँगें हैं-लद्दाख को राज्य का दर्जा, लद्दाख को आदिवासी दर्जा देते हुए संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना, स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण साथ ही लेह और कारगिल के लिए एक–एक संसदीय सीट।
सवाल है कि 2019 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने पर ख़ुशी जताने वाले अचानक लद्दाख को राज्य बनाने की माँग क्यों करने लगे? लद्दाख को राज्य बनाने की माँग कितनी उचित है? ये लोग संविधान की छठी अनुसूची में क्यों शामिल होना चाहते हैं? ये छठी अनुसूची है क्या? और आख़िर सरकार इनकी माँग को पूरा क्यों नहीं कर कर रही है? इसके पीछे सरकार की क्या मंशा क्या है?
लद्दाख में प्रदर्शन की वजह से बड़े पैमाने पर दुकानें बंद कर दी गई हैं। विरोध प्रदर्शन की अगुवाई लेह एपेक्स बॉडी यानी LAB और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) कर रहे हैं । विरोध–प्रदर्शन की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात के लगाया जा सकता है कि कड़ाके की सर्दी में भी पुरुष और महिलाएं सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। जिन माँगो के लिए ये प्रदर्शन कर रहे हैं दरअसल वो काफ़ी पुरानी हैं। यहाँ के लोगों ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग पहली बार 1949 में रखी थी। 33 साल पहले 1989 में अलग राज्य की मांग को लेकर यहां आंदोलन भी हुआ था। लद्दाख को ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल मिली थी। 70 साल बाद लद्दाख के केंद्र शासित बनने की मांग पूरी हुई, लेकिन लद्दाख को विधायिका नहीं मिली।
लद्दाख में मुख्य रूप से दो जिले शामिल हैं – बौद्ध बहुल लेह और मुस्लिम बहुल कारगिल। 2019 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करके जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया था। पहला जम्मू एंड कश्मीर, दूसरा लद्दाख। तब लद्दाख के कारगिल ज़िले में विरोध प्रदर्शन हुए थे जबकि लेह ज़िले में लोगो ने इस फ़ैसले का समर्थन किया था। सोनम वांगचुक उन प्रमुख लद्दाखियों में से एक थे जिन्होंने 2019 में लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के मोदी सरकार के फैसले का समर्थन किया था। वांगचुक एक इंजीनियर, इनोवेटर और जलवायु कार्यकर्ता हैं। कहा जाता है कि उनके जीवन से ही 2009 की बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर फ़िल्म, 3 इडियट्स प्रेरित है। लेकिन अब सोनम वांगचुक कहते हैं कि “जब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना, तो हमें आश्वासन दिया गया कि हमें कुछ सुरक्षा उपाय मिलेंगे। हमें यकीन था कि हमें एक विधान सभा या विधान परिषद और छठी अनुसूची मिलेगी जो हमें सुरक्षा प्रदान करेगी लेकिन अब, कई साल बीत चुके हैं और वे इसके बारे में बात भी नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि उन्हें अपना वादा याद दिलाना भी अपराध जैसा हो गया है। इसीलिए ये विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।”
हालिया विरोध प्रदर्शनों ने पारंपरिक रूप से धार्मिक और राजनीतिक आधार पर विभाजित दो जिलों को एकजुट कर दिया है। दोनों जिलों के सामुदायिक नेताओं ने लोगों की चिंताओं को आगे बढ़ाने के लिए लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) का गठन किया है।
समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए, लेह अपैक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस(KDA) के कानूनी सलाहकार हाजी गुलाम मुस्तफा ने कहा, “जब हम जम्मू–कश्मीर का हिस्सा थे, तो विधानसभा में हमारे चार सदस्य थे और विधान परिषद में दो सदस्य थे। अब विधानसभा में हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इसीलिए जनता को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन ये तभी संभव हो पाएगा, जब राज्य पूर्ण राज्य बनेगा।”
LAB और KDA ने गृह राज्य मंत्री Nityanand Rai को ज्ञापन दिया है कि बाल्टी, बेडा, बोट, बोटो, ब्रोकपा, ड्रोकपा, दर्द, शिन, चांगपा, गर्रा, मोन और पुरीग्पा जैसे आदिवासी समुदाय लद्दाख में हैं। लगभग क्षेत्र का 97 प्रतिशत हिस्सा आदिवासी है इसलिए मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के जैसे लद्दाख को भी छठी अनुसूची में शामिल किया जाये।
सवाल है कि आख़िर ये छठी अनुसूची है क्या?
छठी अनुसूची में संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत खास प्रावधान हैं। इस अनुसूची में जनजातीय क्षेत्र में ऑटोनोमस जिले बनाने का प्रावधान किया गया है। राज्य के अंदर जिलों को विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक ऑटोनोमी दी जाती है। अनुसूची में राज्यपाल को ऑटोनोमस जिलों का गठन करने और पुनर्गठित करने का अधिकार भी दिया गया है। इसके तहत किसी जिले में अलग–अलग जनजातियों के होने पर कई ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल बनाए जा सकते हैं। ADC को भूमि, जंगल, जल, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, स्वच्छता, ग्राम और शहर स्तर की पुलिसिंग, विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति–रिवाज और खनन आदि से जुड़े कानून और नियम बनाने अधिकार होता है और सरकार ऐसे क्षेत्रों में खनन कार्य नहीं कर सकती।
लद्दाख का छठी अनुसूची में शामिल होना इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
सोनम वांगचुक कहते हैं कि “आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए छठी अनुसूची हमारे संविधान में है। यह विविधता में एकता को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने के लिए है। यही भारत की महानता है। केंद्र छठी अनुसूची क्यों लागू नहीं कर रहा है यह एक रहस्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ मजबूत औद्योगिक घराने हमारे संसाधनों का दोहन करना चाहते हैं और निचले स्तर पर सरकारी निर्णय लेने को प्रभावित कर रहे हैं। हमारे पहाड़ों और ग्लेशियरों और हमारी विशिष्ट जातीयता और लद्दाखी संस्कृति की रक्षा करना अनिवार्य है। यह बात बाहर वाले नहीं समझ सकते। शहरों में लोग एक दिन में 600 लीटर तक पानी पीने के आदी हैं। हमने सिर्फ पांच लीटर में गुजारा करने की आदत अपना ली है।”
वांगचुक ने कहा कि “अनुच्छेद 370 के कारण यह पर्वतीय उद्योग और खनन से बचे हुए थे। लेकिन अब लेगों के आशंका बढ़ गयी है। साफ़ है कि सरकार कुछ उद्योगपतियों को लाभ पहुँचाने के मक़सद से लद्दाख में छठी अनुसूची लागू नहीं कर रही है। लद्दाख को एक अलग राज्य बनाने के सवाल पर सोनम वांगचुक कहते हैं की जब सिक्किम राज्य बना तो इसकी आबादी दो लाख थी, जबकि हमारी आबादी साढ़े तीन लाख है। लोकतंत्र के बिना, एक व्यक्ति यानी कि उपराज्यपाल हमारे लिए सब कुछ तय कर रहा है। लद्दाख के लिए आवंटन 6,000 करोड़ रुपये है। आधे से अधिक पैसा वापस चला जाता है क्योंकि वे प्रशासन इसका उपयोग करने में असमर्थ हैं। उपराज्यपाल और नौकरशाह लद्दाख के लिए नए हैं और इस क्षेत्र को नहीं समझते हैं। जब तक वे ऐसा करते हैं, तब तक उनका स्थानांतरण होने का समय हो जाता है। इस तरह की संवेदनशील, नाजुक जगह, जो मुख्य भूमि से बहुत अलग है को एक व्यक्ति द्वारा सभी निर्णय लेकर विकसित नहीं किया जा सकता है। इसलिए हमें राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए। हम पिछड़ गए हैं। जब हम जम्मू–कश्मीर राज्य में थे, हमारे पास चार विधायक थे जो विधानसभा में अपनी आवाज उठाते थे। अब यह शून्य है।
वांगचुक आगे कहते है कि “यहाँ के लोगों को आशंका है कि भारत लद्दाख को दूसरे तिब्बत में बदल सकता है।” चीन द्वारा तिब्बत में सभी प्रकार के खनिजों आदि का पूरी तरह से दोहन किया गया है। वांगचुक का कहना है कि अगर लद्दाख को भूमि सुरक्षा उपाय नहीं मिले तो लद्दाखी अपनी ही भूमि में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। “तिब्बत में, अब शायद ही कोई तिब्बती है। इसमें अधिकतर मुख्य भूमि पर चीन के लोग हैं और तिब्बती अपने यहां अल्पसंख्यक हैं। उनके पास कोई अधिकार नहीं है। लद्दाख में लोगों को डर है कि अगर उद्योग होंगे, तो प्रत्येक उद्योग लाखों लोगों को लाएगा और यह नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र इतने सारे लोगों का बोझ नहीं उठा सकता। कई औद्योगिक समूहों ने बुनियादी ढांचे और खनन के विकास के लिए लद्दाख में रुचि दिखाई है, जिससे स्थानीय निवासी बेचैन हो गए हैं । बंजर और बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा, लद्दाख कई झीलों और कई छोटे और बड़े ग्लेशियरों का घर है। अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से घट रहे हैं। अगर उद्योग आ गए, तो ये सभी ग्लेशियर ख़त्म हो जाएंगे। लोग जलवायु शरणार्थी बन जाएंगे।