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‘थ्री ईडियट्स’ की प्रेरणा रहे सोनम वांगचुक लद्दाख में आमरण अनशन पर क्यों?

2018 में रेमन मैग्सेसे अवार्ड ने सम्मानित, सेना को ठंड से बचाने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले गर्म तम्बू के आविष्कारक सोनम वांग्चुक 6 मार्च से आमरण अनशन पे बैठे हुए हैं। इस अनशन का उद्देश्य लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना है। आमरण अनशन यानी जब तक मृत्यु नहीं आ जाती तब तक अनशन अनवरत जारी रहेगा। सोनम वांगचुक का कहना है कि लद्दाख में तथाकथित विकास के नाम पर तेजी से प्रकृति का विनाश किया जा रहा है। इससे क्षेत्र के पारिस्थितिकीय तंत्र पर बुरा असर पड़ रहा है। यही कारण है कि उन्होंने अपने अनशन को जलवायु अनशन करार दिया है। ये अनशन 21-21 दिनों के लिए चलाया जाना तय हुआ है। वांगचुक कहते हैं “मैंने 21 दिन इसलिए चुना क्योंकि यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा किया गया सबसे लंबा उपवास था, और मैं उसी शांतिपूर्ण मार्ग का अनुसरण करना चाहता हूं जिसका अनुसरण महात्मा गांधी ने किया था। जहां हम किसी और को पीड़ा नहीं पहुंचाते हैं, हम किसी और को बंधक नहीं बनाते हैं, हम खुद को बंधक बनाते हैं, खुद को पीड़ा पहुंचाते हैं ताकि हमारी सरकार और नीति निर्माता हमारे दर्द को नोटिस करें और समय पर कार्रवाई करें।” सोनम वांग्चुक के जीवन से प्रेरित होकर ही मशहूर फिरल्म ‘थ्री ईडियट्स’ बनायी गयी थी।

 

क्या है छठी अनुसूची और इसमें लद्दाख़ को शामिल करने से क्या बदलाव होंगे

सोनम वांगचुक बीजेपी सरकार को उनका किया वादा याद दिलाना चाहते हैं जो 2019 के घोषणापत्र में किया गया था। वादा था लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का। छठी अनुसूची हमारे संविधान में लिखित बारह अनुसूचियों में एक हैं जो कुछ राज्यों के जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करती हैं। सोनम वांगचुक का कहना है कि “लद्दाख में 97 फ़ीसदी आबादी जनजातियों की है, बावजूद इसके लद्दाख छठी अनुसूची में शामिल क्यों नहीं हैं!” छठी अनुसूची में मौजूदा वक्त में चार राज्य हैं असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम। लद्दाख के लोग क्षेत्र में रोजगार, भूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए संविधान की छठी अनुसूची को लागू कराना चाहते हैं। छठी अनुसूची के तहत, जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिले बनाने का प्रावधान है। राज्‍य के भीतर इन जिलों को विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता मिलती है। प्रशासनिक स्वायत्तता वह निकाय है जो सरकार द्वारा अधिकृत और पोषित है लेकिन सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। हालाँकि राज्यपाल को यह अधिकार होता है कि वह इन जिलों की सीमा घटा-बढ़ा सकें। अगर किसी जिले में अलग-अलग जनजातीय समूह हैं तो कई स्वायत्त ज़िले बनाए जा सकते हैं। हर स्वायत्त जिले में एक स्वायत्त जिला परिषद बनाने का प्रावधान होता है जिसे भूमि, जंगल, जल, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, स्वच्छता, ग्राम और नगर स्तर की पुलिसिंग, विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज और खनन आदि से जुड़े कानून, नियम बनाने का अधिकार होता है।

लद्दाख़ के लोगों की पूर्ण राज्य के दर्जे की माँग

3 फ़रवरी 2024 को बीस हज़ार लोग लेह की सड़कों पर थे। लेह शहर के ऐतिहासिक पोलो ग्राउंड में जमा हुए ये लोग उस सरकार को जगाने निकले थे जो 2019 में वायदा कर के सोयी हुई है। वहाँ के लोगों का कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद यहाँ केंद्र सरकार मनमानी कर रही है। सोनम वांगचुक कहते हैं कि लद्दाख में तथाकथित विकास के नाम पर तेजी से प्रकृति का विनाश किया जा रहा है। इससे क्षेत्र के पारिस्थितिकीय तंत्र पर बुरा असर हो रहा है। यही कारण है कि उन्होंने अपने अनशन को जलवायु अनशन करार दिया है। उनका कहना है खनन माफिया की लॉबी सरकार पर दवाब डाल रही है कि लद्दाख के पर्वतों को संरक्षित न किया जाए। जिसके बाद ही ये माँग बढ़ती जा रही है कि छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल किया जाये और एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे कर विधानसभा का गठन किया जाय। ऐसा करने से स्वायत्त निकाय के हाथों में ये अधिकार होगा कि वो यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रख सकें। किसी को भी खनन करना होगा तो उसे खनन करने देने और न करने देने का अधिकार भी उन्ही स्वायत्त निकायों के पास होगा।

370 हटने के बाद, केंद्र प्रशासित प्रदेश बन कर क्या बदलाव हुआ

अनुच्‍छेद 370 खत्‍म होने के बाद लेह-लद्दाख के लोगों में ख़ुशी का माहौल था। बौद्ध बहुतायत वाले लेह को यह शिकायत थी कि जम्‍मू और कश्‍मीर के राजनेता उनकी अनदेखी करते हैं। 5 अगस्‍त, 2019 को जब केंद्र सरकार ने भारत के इस सबसे उत्‍तरी राज्‍य का संवैधानिक दर्जा बदला, तब लोगों में उम्‍मीद जगी थी। बाद में यह पता चला कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्‍मू और कश्‍मीर की विधायिका तो होगी लेकिन लद्दाख की नहीं। पहले की विधानसभा में क्षेत्र के चार विधायक होते थे, वहीं अब पूरा का पूरा प्रशासन नौकरशाहों के हाथों में है। यहाँ के स्थानीय लोगों को लगता है क‍ि अब सरकार उनसे और दूर हो गई है। ऊपर से जम्‍मू और कश्‍मीर की डोमिसाइल नीति में बदलाव से इलाके की भूमि, रोजगार, डिमॉग्रफी और कल्‍चरल पहचान खत्‍म होने का डर भी बढ़ा है। अभी लेह और करगिल में दो हिल काउंसिल हैं, लेकिन वे छठी अनुसूची में नहीं हैं। उनकी शक्तियां कुछ स्थानीय कर लगाने और केंद्र से मिलीं जमीन के इस्‍तेमाल तक सीमित हैं।

क्या कहा राष्‍ट्रीय अनुसूचति जनजाति आयोग ने 

सितंबर 2019 में राष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। कहा गया था कि नये केंद्रशासित प्रदेश की 97% से ज्‍यादा आबादी जनजातीय है। वहां देश के दूसरे हिस्‍सों से जमीन खरीदने या अधिग्रहण करने पर पाबंदी है, यहाँ की सांस्‍कृतिक विरासत एक दम अलग है जिसे संरक्षण की सख़्त जरूरत है। और यही वादा बीजेपी ने अपने मेनिफ़ेस्टो में भी किया था लेकिन अब घोषणापत्र में किए गए वादों को जुमले की संज्ञा दे कर निकल लिया जाता है। यहां तक कि मणिपुर जहां कुछ इलाकों में जनजातियों की बहुलता है, वहां की स्वायत्त परिषद भी छठी अनुसूची का हिस्‍सा नहीं हैं। नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश जो कि पूरे जनजातीय राज्‍य हैं इनको भी छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया।

सोनम वांगचुक का संदेश 

“मैं सोनम वांगचुक हूं, जो भारतीय हिमालय में 11,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित लद्दाख के लेह नामक स्थान से दुनिया के लोगों तक पहुंच रहा हूं। मैं आज आप तक क्यों पहुँच रहा हूँ? क्योंकि आज हमारा ग्रह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों से गुजर रहा है। यह चुनौतियाँ कहीं भी हिमालय में इससेअधिक स्पष्ट नहीं हैं, विशेषकर तिब्बती पठार पर जहाँ हम अभी हैं। आपने हमारे तिब्बती भाइयों और बहनों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में सुना होगा, जहां अंधाधुंध बांध बनाए जा रहे हैं और पर्यावरण का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। इसी तरह, लद्दाख में हिमालय के भारतीय हिस्से में, हम इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना शुरू कर रहे हैं। हमारे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे सूखा और अचानक बाढ़ आ रही है और जल्द ही हममें से कई लोग जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं।”

सोनम वांग्चुक ने लोगों से रविवार 17 मार्च को अन्य शहरों में एक दिवसीय उपवास कर आंदोलन का समर्थन करने का आग्रह भी किया है। ग़ौर करने की बात है कि ये वही सोनम वांग्चुक हैं जिनके जीवन से प्रेरणा लेकर आमिर खान की मशहूर फिल्म थ्री ईडियट बनी थी।

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