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सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती के बाद एसबीआई ने चुनाव आयोग को दिया चुनावी बॉन्‍ड का हिसाब

सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती के बाद  भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने चुनावी बॉन्ड का विवरण  केंद्रीय चुनाव आयोग को सौंप दिया है। आयोग ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक  15 मार्च  तक इस विवरण को सार्वजनिक कर देगा। 

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ  ने सोमवार 11 मार्च को भारतीय स्टेट बैंक के उस अनुरोध को ख़ारिज कर दिया था जिसमें चुनावी बॉन्ड  का विवरण पेश करने के लिए 30 जून तक का समय माँगा गया था।  कोर्ट ने सुनवाई के दौरान भारतीय स्टेट बैंक से कहा था कि वह मंगलवार(12 मार्च)  को सुप्रीम कोर्ट का कामकाज समाप्त होने तक चुनावी बॉन्ड  का विवरण आयोग को उपलब्ध करा दे।     

इस संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड़ कर रहे थे। पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा अन्य सदस्य थे।पीठ ने  सुनवाई के दौरान अतिरिक्त समय न दिए जाने का कारण देते हुए कहा था कि  जो जानकारी बैंक से मांगी गई है वह बैंक के पास आसानी से उपलब्ध है इसलिए अतिरिक्त समय दिये जाने की कोई वज़ह नहीं है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि चुनाव आयोग 15 मार्च तक सारी जानकारियां अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करे। हालाँकि शीर्ष अदालत ने किस कंपनी ने किस दल को कितना चंदा दिया, इसका विवरण तत्काल देने को लेकर एसबीआई को छूट दे दी।  

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में  चुनावी बॉन्ड  को लेकर  कानून बनाया गया था जिसके बाद राजनीतिक पार्टियों को कॉरपोरेट कंपनियों या अन्य पूंजीपतियों से मिलने वाले चंदे की जानकारी मिलना असंभव हो गया था। पारदर्शिता के इस अभाव को गंभीर मामला मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने  15 फरवरी को इस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

 

क्या है चुनावी बॉन्ड ?

चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा प्रदान करने का एक  वित्तीय ज़रिया था।  यह एक वचन पत्र के रूप में था जिसे भारत का कोई भी नागरिक या  कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की कुछ चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता था और किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दे सकता था। चुनावी बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता था। चुनावी बॉन्ड 1000 रूपये से लेकर 1 करोड़ रूपये  तक ख़रीदे जा सकते थे। आरोप था कि सरकार के दबाव में तमाम कंपनियों बीजेपी को चंदा दे रही हैं जबकि नाम खुलने के डर से विपक्षी दलों को चंदा देने में हिचक रही हैं। सरकार को एसबीआई के ज़रिये ये पता चल सकता था कि किस कंपनी ने किसे चंदा दिया लेकिन विपक्ष को ये जानकारी नहीं मिल सकती थी।  

 

सुप्रीम कोर्ट में क्या- क्या हुआ ?

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड की ख़रीद-बिक्री पर रोक लगा दी, साथ ही स्टेट बैंक  को अप्रैल 2019 से लेकर अब तक चुनावी बॉन्ड की खरीद-बिक्री का विवरण को 6 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भारतीय स्टेट बैंक ने 3 हफ्तों का अतिरिक्त समय मांगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ही पर्याप्त समय दिए जानें के कारण बैंक की इस मांग को मानने से इंकार कर दिया।  15 मार्च तक मांगे गए विवरण को बैंक की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए कहा है। 

इस फैसले को मोदी सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना  जा रहा है क्योंकि इलेक्टोरल बांड का सबसे ज़्यादा फायदा बीजेपी को मिला है। ये भी माना गया कि एसबीआई ने सरकार के दबाव में ही सुप्रीम कोर्ट से अतिरिक्त समय मांगा था क्योंकि इससे कंपनियों और उसे मिले दान का रिश्ता सार्वजनिक हो सकता था। याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले की गंभीरता को समझा है। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने एसबीआई की याचिका खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देशहित में बताया, वहीं कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को  ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि पूरा देश हैरान है कि बीजेपी जनता के बीच जानकारी देने से क्यों डरती है। लोगों को यह जानने का अधिकार है कि किस कंपनी ने किस राजनीतिक पार्टी को कितनी फंडिंग की। 

 

 

 

  

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