उत्तर प्रदेश के हापुड़ में 2018 में पीट-पीटकर अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति को मार डालने के आरोप में अदालत ने दस लोगों को उम्रकैद की स़ज़ा सुनाई है। राकेश, हरिओम, युधिष्ठिर, रिंकू, करणपाल, मनीष, ललित, सोनू, कप्तान और मांगेराम को पुलिस ने पैंतालिस साल के क़ासिम को पीट-पीट कर मार डालने के मामले में दोषी ठहराते हुए यह सज़ा सुनाई।
क्या है मामला ?
वर्ष 2018 में क़ासिम (उम्र 45) की हत्या बझेड़ा गाँव की भीड़ द्वारा कर दी गई थी जिसमें 10 लोगों की पहचान कर सजा सुनाई गई है। हत्या के पीछे गौहत्या की अफ़वाह थी। द हिन्दू की ख़बर के मुताबिक़ – भीड़ ने क़ासिम पर पेचकस और दराती से हमला किया था ।उसकी जमकर पिटाई की गई थी। पोस्टमार्टम में भी गंभीर चोटों का जिक्र किया गया है। समीउद्दीन(उम्र 62) पर भी हमला किया गया था लेकिन वह किसी तरह अपनी जान बचा कर भाग निकला।
पुलिस ने दर्ज़ किया था झूठा केस ?
पीड़ित पक्ष की ओर से जब पिलखुवा थाना क्षेत्र में एफ.आई.आर दर्ज़ कराई गई थी तो स्थानीय पुलिस ने मामले को रोड रेज की शक्ल दे दी थी। इसके बाद समीउद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने समीउद्दीन को सुरक्षा प्रदान की और स्थानीय पुलिस को सख़्त निर्देश दिया कि मामलें को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज़ किया जाये। सुप्रीम कोर्ट ने मेरठ ज़ोन के आई.जी को जांच की निगरानी करने का आदेश दिया था।
अदालत ने क्या कहा ?
अपर सत्र न्यायाधीश ने अपने अंतिम निर्णय में पहचाने गये 10 आरोपियों को आईपीसी की धारा 302/149, 307/149, 147, 148 और 153ए के तहत दोषी ठहराया। इसके अलावा सभी पर 58 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
क्या है मॉब लिंचिंग ?
जब कोई भीड़ किसी व्यक्ति या समूह की हत्या कर देती है तो इसे मॉब लिंचिंग कहा जाता है। इसमें अक्सर मुख्य हत्यारों की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। भारत में यह समस्या कई वर्षों से है जिसके कारण कई निर्दोष लोगों की जान गई है।मॉब लिंचिंग कई कारणों से होती है जिसमें सांप्रदायिक तनाव, कमज़ोर क़ानून व्यवस्था, सांप्रदायिक राजनीति, जागरूकता का न होना आदि शामिल हैं। कई मामलों में मॉब लिंचिंग का मुख्य कारण सोशल मीडिया पर द्वेष और अफ़वाहों का प्रचार रहा है।
इंडिया स्पेंड की वेबसाइट के मुताबिक़ वर्ष 2010 से 2017 तक गाय से जुड़ी 63 घटनाओं में 28 लोग मारे गए हैं इनमें से 97% हमले 2014 के बाद हुए हैं। मारे गए लोगों में 86% मुसलमान थे। इसके अलावा 21% मामलों में पुलिस ने पीड़ितों के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज़ किया था। वर्ष 2017 में वर्ष 2016 की तुलना में गाय से संबंधित लिंचिंग मामलों में 75% तक की वृद्धि देखी गई थी जो वर्ष 2010 के बाद मॉब लिंचिंग को लिहाज से ख़राब वर्ष रहा है।