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2047 तक ‘विकसित भारत’ के मोदी के दावे को रघुराम राजन ने बताया ग़लत

रिज़र्व बैंक इंडिया के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य पाने के दावे को खारिज़ कर दिया है। उन्होंने कहा कि भारत बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जा रही आर्थिक दर पर भरोसा कर गलती कर रहा है। 

बीबीसी को दिये गये साक्षात्कार में रघुराम राजन ने मोदी सरकार के 10 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था पर काम को लेकर खुलकर बात की। भारत की मज़बूत आर्थिक व्यवस्था को लेकर रघुराम राजन ने कहा कि भारत को अपनी सरंचनात्मक समस्याओं पर काम करने की  आवश्यकता है। रघुराम राजन ने कहा कि सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि भारत में अभी तक मानवीय पूंजी विकसित नहीं हुई है। इस पर निवेश नहीं किया गया है। 

मानवीय पूंजी का अर्थ है ज्ञान, कौशल और अनुभव के आधार पर व्यक्ति को आर्थिक मूल्य लायक बनाना। ताकि व्यक्ति आर्थिक भागीदारी में अपनी भूमिका निभा सके। 

 

भारत में अभी भी 35 फ़ीसदी कुपोषण 

रघुराम राजन ने कहा कि कोविड महामारी के कारण जिन बच्चों का स्कूल छूट गया था, उनको पूरी तरह से वापस स्कूल नहीं लाया जा सका है। भारत में कुपोषण अभी भी 35 फ़ीसदी है जो कि कई अफ्रीकी देशों से अधिक है।इसलिए कुपोषण पर काम किया जाना आवश्यक है। 

बीबीसी ने कहा कि लोग मानते हैं कि सरकार का  यह दशक आर्थिक विकास के रूप में बेहतर रहा है, इस पर रघुराम राजन ने कहा कि आँकड़े इसके पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा, “अब भी हम आर्थिक वृद्धि में महामारी के पूर्व की अपेक्षा चार-पांच फ़ीसदी पीछे चल रहे हैं। बेरोज़गारी के आँकड़े और भी चिंताजनक स्थिति को दर्शाते हैं। अच्छी चीज़ें हुई हैं लेकिन उतनी भी नहीं जितना बताया जाता है। रघुराम राजन ने कहा कि युवा आबादी पर भारतीय नेताओं ने बढ़ा-चढ़ाकर दावे पेश किये हैं। अब जो सरकार बनेगी, उसको लोगों की शिक्षा और कौशल पर ध्यान देने की ज़्यादा जरुरत होगी।” 

 

लोगों को शिक्षित करना आवश्यक    

बीबीसी के सवाल कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य रखा है, रघुराम राजन ने असहमति व्यक्त की। रघुराम राजन ने कहा भारत में अभी भी बच्चे उच्च शिक्षा पूरी करने से पहले स्कूल जाना छोड़ रहे हैं। जिसकी दर बहुत अधिक है। राजन ने कहा कि भारत के पास श्रम शक्ति बढ़ रही है लेकिन लोगों के पास रोज़गार नहीं है। इस श्रम शक्ति का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब भारत में रोजगार को बढ़ाया जाये। 

रघुराम राजन ने शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि ग्रेड थर्ड के मात्र 20.5 फ़ीसदी बच्चे ही ग्रेड टू की किताब पढ़ पाते हैं। भारत की साक्षरता दर वियतनाम जैसे देशों से भी कम है। आठ फीसदी विकास दर को कायम रखने के लिए अभी भी भारत को बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। 

 

चिप मैन्युफैक्चरिंग की जगह शिक्षा में निवेश आवश्यक

रघुराम राजन इसके पक्ष में नहीं है कि सरकार चिप मैन्युफैक्चरिंग को भारत लाने के लिए 760 अरब रुपयों की सब्सिडी प्रदान कर रही है। जबकि शिक्षा पर 476 अरब रुपयों का प्रावधान किया गया है। राजन का कहना है कि शिक्षा के माध्यम से पहले प्रशिक्षण आवश्यकता है। 

रघुराम राजन ने अपनी किताब ‘ब्रेकिंग द मोल्ड: रीइमेजिनिंग इंडियाज इकोनॉमिक फ़्यूचर’ में लिखा था कि भारत को शिक्षा क्षेत्र के साथ असमानता को कम करने और श्रम आधारित उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने भारत में केंद्र सरकार के अधिक प्रभावी रहने को सही नहीं माना है। वे राज्यों को और अधिक नियंत्रण देने की वकालत करते हैं ताकि विकास को बेहतर तरीके से किया जा सके। 

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