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हिरासत में लिए गये इज़रायली दूतवास पर प्रदर्शन करने जा रहे छात्र कार्यकर्ता

फिलिस्तीन पर इजरायल द्वारा की जा रही बमबारी के विरोध में सोमवार को इज़रायली दूतावास पर प्रदर्शन की कोशिश कर रहे छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। विभिन्न छात्रसंगठनों ने मिलकर इस विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। प्रदर्शनकारी खान मार्केट मेट्रो स्टेशन से पैदल मार्च करते हुए इज़रायली दूतावास जा रहे थे जब पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया।

प्रदर्शन में शामिल जेएनयू छात्र संघ की निवर्तमान अध्यक्ष आयशी घोष ने कहा कि सरकार का आधिकारिक स्टैन्ड फिलिस्तीन के समर्थन में है फिर भी वहाँ के लोगों के समर्थन में हो रहे प्रदर्शन को लगातार दबाने की कोशिश की जा रही है। प्रदर्शनकारियों को पुलिस हिरासत में लिया जा रहा है। यह निंदानीय है। भारत सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए घोष ने कहा कि जिस दिन हमला हुआ, उसके कुछ घंटों के भीतर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इज़रायल के समर्थन में सोशल मीडिया साइट एक्स पर पोस्ट किया था। इस पोस्ट में उन्होंने इज़रायल पर हुए हमले की निंदा की थी लेकिन फिलिस्तीन के समर्थन में उन्होंने सीधे तौर पर अभी तक इज़रायल के कारनामों की निंदा नहीं की है। यह प्रधानमंत्री के दोहरे मापदंड को दर्शाता है।

दरअसल 7 अक्टूबर की अपनी पोस्ट में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा था कि ‘इजरायल में आतंकवादी हमलों की खबर से गहरा सदमा लगा है। हमारी संवेदनाएँ और प्रार्थनाएँ निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इज़रायल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।’ इस पोस्ट में फिलिस्तीन का ज़िक्र न होने की आलोचना हुई थी जिसे बाद में विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में दुरुस्त किया।

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि सरकार के मंत्री लगतार फ़ेक प्रपोगैन्डा फैला रहे हैं। वे फिलिस्तीन के समर्थन को हमास का समर्थन बता रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है। हम किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करते। उन्होंने कहा कि जो लोग फिलिस्तीन को मिल रहे समर्थन को हमास को मिल रहे समर्थन की तरह पेश कर रहे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि भारत का आधिकारिक स्टैन्ड भी तो फिलिस्तीन के लिए एक स्वतंत्र व संप्रभु राष्ट्र के निर्माण की बात करता है।

वहीं जामिया मिलिया इस्लामिया की एसएफआई छात्र संगठन से जुड़ी एक छात्रा ने कहा कि चारों तरफ मासूमों पर ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं। पहले दुनिया ने रूस यूक्रेन का युद्द देखा, उस दौरान निर्दोष लोगों की हत्याएं की गईं। उनका खून अभी सूखा भी नहीं था कि अब दुनिया इज़रायल- फिलिस्तीन का युद्ध देख रही है। संयुक्त राष्ट्र पर सवाल उठाते हुए छात्रा ने कहा कि जिन उद्देश्यों के साथ इन संस्थाओं की स्थापना हुई थी, उन उद्देश्यों को पूरा करने में यह संस्थाएँ पूरी तरह नाकाम रही हैं। चाहे वो रूस-यूक्रेन का युद्ध हो या फ़िर, इज़रायल- फिलिस्तीन विवाद, शांति व्यवस्था कायम करने में यह संस्थाएँ फ़ेल हुईं हैं।

हमास के हमले में इज़रायल में 1400 से अधिक लोग अपनी जान गवाँ चुके हैं वहीं 5000 से ज़्यादा लोगों के घायल होने की खबर है। वहीं इज़रायल की जवाबी कार्रवाई में फिलिस्तीन में 4600 से अधिक लोगों की जाने जा चुकी हैं वहीं 14000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इज़रायल पर अस्पतालों पर भी बमबारी के आरोप लगे हैं। साथ ही फिलिस्तीन के लोगों को मानवीय मदद पहुँचने की राह में भी वह रोड़े डाल रहा है। इज़रायल के इस रवैये की दुनिया भर में निंदा हो रही है।

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