दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पद से हटाये जाने वाली याचिका को खारिज़ कर दिया है। अदालत ने कहा कि इस मामलें में कोर्ट दख़ल नहीं दे सकता है।यह मामला न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर का है। इस मामलें में उपराज्यपाल विचार करके कोई फ़ैसला ले सकते हैं।अगर उपराज्यपाल के फ़ैसले में कोई संवैधानिक कमी होगी तो अदालत जाँच कर सकती है। अदालत ने पूछा कि क्या कोई ऐसा क़ानून है जो हिरासत में लिये गये मुख्यमंत्री को पद से हटाने का प्रावधान करता है?
क्या था याचिका में ?
खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले सुरजीत कुमार यादव ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पद से हटाने की माँग करते हुए याचिका दाखिल की थी।अपनी याचिका में उन्होंने मुख्य रूप से तीन बातें सामने रखी थीं। पहली, अरविन्द केजरीवाल जेल में रहते हुये गोपनीयता की शपथ पर क़ायम नहीं रह पायेंगे। दूसरी, बतौर मुख्यमंत्री वे कैबिनेट मीटिंग नहीं कर पायेंगे जिसकी वज़ह से कोई फ़ैसला नहीं ले पायेंगे। तीसरी, बतौर मुख्यमंत्री उन्हें हर विभाग की रिपोर्ट उपराज्यपाल को भेजनी होती है, जो जेल में रहते हुए संभव नहीं है।
राष्ट्रपति शासन का आदेश नहीं दे सकते – उच्च न्यायालय
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में राष्ट्रपति शासन का आदेश देने से इंकार कर दिया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि अगर कोई संवैधानिक विफ़लता होती है तो निर्णय उपराज्यपाल द्वारा ही किया जायेगा। उनकी सिफ़ारिश के आधार पर ही राष्ट्रपति शासन का निर्णय राष्ट्रपति द्वारा लिया जा सकता हैं। मुख्यमंत्री को अपने पद पर रहना चाहिये या नहीं, इस पर अदालत राष्ट्रपति या उपराज्यपाल को कोई मार्गदर्शन नहीं दे सकती। अदालत ने कहा अगर केजरीवाल ने किसी कानून को तोड़ा हो,रोका हो या बाधा पहुंचाई हो तो बताओं।